Saturday, 21 November 2015

फ़िराक़ गोरखपुरी-(होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं )

होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं
अहले-नज़र ये चोट भी खाये हुए-से हैं

वो तूर हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क[1]
हर अंजुमन में आग
लगाये-हुए-से हैं

सुब्हे-अज़ल को यूँ ही ज़रा मिल गयी थी आंख
वो आज तक निगाह
चुराये-हुए-से हैं

हम बदगु़माने-इश्क तेरी बज़्मे - नाज से
जाकर भी तेरे सामने
आये-हुए-से हैं

ये क़ुर्बो-बोद[2] भी हैं सरासर फ़रेबे-हुस्ने
वो आके भी फ़िराक़ न आए-हुए-से हैं
शब्दार्थ:
1-प्रेम में दुखी लोग
2-सा‍मीप्य एवं दूरी

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