Sunday, 17 April 2016

ग़ुलाम रब्बानी 'ताबाँ'---(जल्वा पाबंद-ए-नज़र भी है नज़र)

जल्वा पाबंद-ए-नज़र भी है नज़र-साज़ भी है
पर्दा-ए-राज़ भी है पर्दा-दर-ए-राज़ भी है

हम-नफ़स आग न लग जाए कहीं महफ़िल में
शोला-ए-साज़ भी है शोला-ए-आवाज़ भी है

यूँ भी होता है मदावा-ए-ग़म-ए-महरूमी
जब्र-ए-सय्याद भी है हसरत-ए-परवाज़ भी है

मेरे अफ़कार की रानाइयाँ तेरे दम से
मेरी आवाज़ में शामिल तेरी आवाज़ भी है

ज़िंदगी ज़ौक़-ए-नुमू ज़ौक़-ए-तलब ज़ौक़-ए-सफ़र
अंजुमन-साज़ भी है गर्म-ए-तग-ओ-ताज़ भी है

मेरे अफ़्कार ओ ख़यालात में सारी 'ताबाँ'
हुस्न-ए-महफ़िल भी है रानाई-ए-शीराज़ भी है

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