Wednesday, 12 August 2015

प्रेम नारायण 'पंकिल'---(चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रूख़-ए-शाम के बाद)



चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रूख़-ए-शाम के बाद
सब को पहचान लिया गर्दिश-ए-अय्याम के बाद

मिल गई राह-ए-यक़ीं मंज़िल-ए-औहाम के बाद
जलवे ही जलवे नज़र आए दर ओ बाम के बाद

चाहिए अहल-ए-मोहब्बत को की दीवाना बनें
कोई इल्ज़ाम न आएगा इस इल्ज़ाम के बाद

इम्तिहान-ए-तलब-ए-ख़ाम लिया साक़ी ने
जाम-ए-लब-रेज़ दिया दुर्द-ए-तह-ए-जाम के बाद

हाए क्या चीज़ है ये लुत्फ़-ए-शिकस्ता-पाई
हौसले और बढ़े कोशिश-ए-ना-काम के बाद

ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का  'पंकिल'
राह-रव और भी थक जाता है आराम के बाद

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