Saturday, 8 August 2015

ओम पुरोहित 'कागद'---(सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो)

सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो
हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो

मन मार के बैठे हैं जो सहमे हुए डर से
उन सारे परिन्दों को चहकने की दुआ दो

वो लोग जो उजड़े हैं फ़सादों से, बला से
लो साथ उन्हें फिर से पनपने की दुआ दो

कुछ लोग जो ख़ुद अपनी निगाहों से गिरे हैं
भटके हैं ख़यालात बदलने की दुआ दो

जिन लोगों ने डरते हुए दरपन नहीं देखा
उनको भी ज़रा सजने-सँवरने की दुआ दो

बादल है के कोहसार पिघलते ही नहीं हैं
 'कागद'  इन्हें अब तो बरसने की दुआ दो

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