Friday, 4 March 2016

कृश्न कुमार 'तूर'---(इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक)

इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक
है पर खोले हुमा[1]फ़लक़ तक

कब पैरवी-ए-ज़माना होती
वैसे तो हैं नक़्शे-पा फ़लक़ तक

कुछ कम असरे-जुनूँ न समझो
जाता है ये रास्ता फ़लक़ तक

फेरेगा रुख़ ये जाँ ही लेकर
है सैले-ग़मे फ़ना फ़लक़ तक

हर सम्त अना ज़हूर पर है
रौशनी है क़ुतुब नुमा फ़लक़ तक

बार-आवर हो न हो ज़मीं पर
जाती है मेरी दुआ फ़लक़ तक

इस उम्रे-रवाँ की बात क्या है
है ‘तूर’ गुरेज़-पा फ़लक़ तक

1- एक परिन्दा जिसका साया जिस पर पड़े वो बादशाह बन जाता

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