Tuesday, 29 March 2016

प्रमोद रामावत ’प्रमोद’---(आँख से बाहर निकल कर कोर पर ठहरा रहा)

                                                            (Jeda Villa Painting by Jan Wils )

 
आँख से बाहर निकल कर कोर पर ठहरा रहा ।
ज़िन्दगी पर आँसुओं का, इस तरह पहरा रहा ।

थी ख़ुशी तो ओस का कतरा हवा में घुल गई,
ज़िन्दगी का दर्द से, रिश्ता बड़ा गहरा रहा ।

बस्तियाँ थीं उम्र की, तब थी सफ़र में रौशनी,
फिर अँधेरा ही अन्धेरा, जब तलक सहरा रहा ।

दर्द की एक बाढ़ यूँ, हमको बहा कर ले गई,
या तो हम चीख़े नहीं, या वक़्त ही बहरा रहा ।

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